चलते हुए ट्रेन 🚆 में, हवा भी गर्म लग रहा था।
दौड़ती हुई पेड़ो के साथ नजरे कुछ यू गुजर रहा था।
हजारों मुसाफिरों के बीच भी में सफर अकेला कर रहा था।
फुरसत में दिखा भी कोई तो किस्मत हमे आजमा रहा था।
सोचा बेरुखी सफर को सुहाना बनाते है।
online ही सही चलो किसी दोस्त को बुलाते है।
पर हमे कहां पता था जिसे बुलाया मजाक में ही सही, उसने भी हमे सताया था।
एक बार फिर सही पर किस्मत ने हमे दुबारा आजमाया था।
फिर सोचा चलो अकेले ही सही सफर को पूरा करते है ।
ट्रेन 🚆 के दरवाजे के पास जाके गर्म हवा को भी ठंड मेहसूस करते है।
इस बेरुखी दुनिया में कुछ प्रकृति से रूबरू करते है।
चलते चलते ही सही चलो फिर एक बार खुद से मिलते है।
Sanju_singh
No comments:
Post a Comment