तुम्हारे नफरत की आग में जिंदिगी भर मेरा प्यार जलता रेह गया।
मेरी रूह तक को तुमने खत्म कर दिया फ़िर भी मेरा जख्म जिंदा रेह गया ।
जो कांटे तुमने मेरे जिंदिगी में बिछाए थे ।
में जिंदीगी भर उनको समेटता रेह गया।
मरने के बाद भी कब्र में मेरा दिल तुम्हारे लिए धड़कता
रेह गया।
मेरा भटकता हुआ रूह तुम्हारे मौजूदगी का दुआ मांगता
रेह गया
मैं ना मौत का हो पाया ना जिंदीगी का हो पाया।
ना ही तुम्हारे नफरत के कब्र में चैन से सो पाया।
मरने के बाद भी तुम्हारे उस चेहरे को ना भुला पाया
सब खत्म होने के बाद भी मैं एक आंसू तक न बहा पाया।
Sachidananda prusty
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