सोचती हूं
कहने को पूरी ही दुनिया अपनी है,
पर दुनिया में अपना कोई नहीं,
जीवन में उलझन ही उलझन हैं ,
क्या इनका कोई हल ही नहीं,
सब कुछ तो है पर पास कुछ भी नहीं,
कमी रह गई कुछ या जितना था वह काफी नहीं,
नहीं समझ पाई तो समझा दिया होता,
और जितना समझा क्या उतना काफी नहीं,
शिकायत तुम्हारी थी की बताया क्यूं नहीं,
प्यार था तो जमाने को जताया क्यूं नहीं,
मेरी आंखों में जितना था क्या वह काफी नहीं,
गलतियों से जुदा तुम भी नहीं और हम भी नहीं,
दोनो इंसान हैं खुदा तुम भी नहीं हम भी नहीं,
माफी हमने मांगी क्या हमारा झुकना तुम्हारे लिए काफी नहीं,
चाहते दोनो बहुत एक दूसरे को ,
मगर ये हकीकत मानते तुम भी नहीं हम भी नहीं,
एक लम्हे को हम रुके क्या हमारा रुकना काफी नहीं,
गलतफामियो ने कर दी इतनी दूरी पैदा ,
वरना फितरत के बुरे तुम भी नहीं हम भी नहीं,
गलतियों से जुदा तुम भी नहीं हम भी नही,
हमने जितना समझा क्या उतना काफी नहीं...............................
Radhe Radhe🙏🙏🙏🙏
I hope you all like it.
Thank you for giving your precious time to my words ..
V nice
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDeleteAwesome❣️
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