जहा पे हर लोग इंसानियत का मतलब जानते है।
भूखे रह कर भी दूसरो को खाना खिलाने जानते है।
जहा पे बेफिक्र होके लोग दूसरे के घर जाते है।
बुजुर्ग को अपने मां बाप के जैसे इज्जत दे जाते है।
बच्चा भी यहां बड़े के जैसे बोलता है।
मदत ऐसे जैसे आंखे अपने पलको को करता है।
जहा पे वृक्ष भी पंक्षियों के लिए फूलों की वर्षा करते है।
जहा पे जंगल झाड़ियों के बीच भी जीवन फल फूलते है।
जहा अक्सर बदलती रहती सरकार है।
फिर भी यहां किसी के दिल में कम न हुआ प्यार है।
जहा पे सबसे ज्यादा बोलि जाती है खोरठा और नागपुरी ।
मिठास इसमें ऐसे जेसे मिटा दे दिलो से दिलो की दूरी।
जहा आज भी 12 महीनो में 13 त्यौहार मनाए जाते है।
कुछ न होने के बावजूद भी यहां खुशियां मनाएं जाते है।
जंगल झाड़ी भगवान यहां का।
हर कष्ट को हर जाता है।
खुले आसमान के नीचे
हर परिंदा यहां अपना घर बनाता है।
दहकती धूप में वृक्ष्य पिता के जैसे सहारा बन के आता है।
ओर तालाब यहां जैसे रेगिस्तान में वर्षा का सुख दे जाता है।
विवाह का अलग ही प्रथा यहां का।
ना कोई पंडित ना कोई मंत्र
बस प्रकृति ओर बुजुर्ग का आशीर्वाद ही
खुशियों का खजाना बन जाता है।
जहा पहाड़ो के बीच बादले रेंगती है।
मस्त हवाएं भी भी यहां थिरकती हुई झूमती है।
सर्द हो ,गर्म हो, या हो वर्षा क्या फर्क पड़ता है।
जहा सूर्य की किरणे भी बड़ा सरलता के साथ गिरता है।
Netharhart है ये झारखंड का इसका ताज प्रकृति की गोद में ही चमकता है।
नीची ऊंची जाति का कोइ भेद नहीं यहां ।
यहां न कोई काला ना गोरा ना लंबा ना बौना।
छूत अछूत तो बस यहां एक कल्पना मात्र है।
बच्चियों से लेकर बड़े बूढ़े तक जहां नारियों का सम्मान है।
चलो दिखाऊ आपको जानवरो का सम्मान यहां।
गली के कुत्तों को भी जहां लोग खाना खिलाते है
गाय का लात खा कर भी उसे प्यार से उसे सहलाते है।
बेलो को भी यहां भगवान के रूप में देखा जाता है।
फसल के कटाई के बाद आज भी इन्ही का सहारा लिया जाता है।
कोवो को भी यहां बुला कर के खाना परोसा जाता है।
घर में कही चिड़िया घोसला बना दे तो उसका रक्षा करना हमारा कर्तव्य बन जाता है।
Beautifully penned!!
ReplyDeleteThank you
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