सोचा तो हमने था परखने का काम तो तुम्हारा था।
धड़कन तो हमारा था। जज्बात भरने का काम तुम्हारा था।
पता चला हमे कुछ समय तक बात करने के बाद।
ना नियत थी ना इरादे थे। जेसे बहते हुऐ नदी के दो किनारे थे।
आंखे कहती कुछ और थी, तुमने बोला कुछ और था।
और नासमझ दिल ये मेरा। समझता कुछ और था।
हमे क्या पता था उस हसी के पीछे भी छुपी एक चालाकी थी।
तेरी नादानी के पीछे भी छुपी एक कहानी थी।
इतना दूर आने।से।पहले एक बार बताया तो होता।
नासमझ बनने का ढोंग सायद तुमने रचाया न होता।
रब ने काश तुम्हे मुझ से न मिलाया होता। तो सायद ऐसा वक्त ही न आया होता।
पर इसमें ना गलती तुम्हारी है न मेरी है।
मेरा मुकद्दर ही ऐसा है।
जेसे अपनो का प्यार पाना ही मेरे लिए अधूरा सा है।
Very nice 💫🔥
ReplyDeletethank you
Delete